ज़िंदगी में समस्या देने वाले की हस्ती कितनी भी बड़ी क्यों न हो,
पर भगवान की “कृपादृष्टि” से बड़ी नहीं हो सकती
कोई भी मनुष्य किस बात को किस प्रकार से समझता है,
यह उसकी मानसिकता तय करती है।
कोई दूसरों की थाली में से भी छीन कर खाने में अपनी शान समझता है,
तो कोई अपनी थाली में से दूसरों को निवाले खिला कर संतुष्ट होता है।
सारा खेल संस्कारों,समझ और मानसिकता का ही तो है।
लेकिन एक बात तो तयशुदा है कि
छीन कर खाने वालों का कभी पेट नहीं भरता
और बाँट कर खाने वाले कभी भी भूखे नहीं रहते।
आपकी आभारी विमला विल्सन मेहता
जय सच्चिदानन्द 🙏🙏