तुलना के खेल में मत उलझो,
क्योंकि इस खेल का कहीं कोई अंत नही…..
जहाँ तुलना की शुरुआत होती है,
वही से आनंद और अपनापन खत्म होता है…
इतना ही झुको जितना उचित हो,
ज्यादा झुकोगे तो लोग तुम्हारी पीठ को
पायदान बनाकर तम्हारे ऊपर से गुजर जायेंगे..
आपकी आभारी विमला विल्सन मेहता
जय सच्चिदानन्द 🙏🙏