हे धरती ! तू बड़े कंजूस है । सख़्त मेहनत और एड़ी चोटी का पसीना एक हो जाने के बाद ही तू हमें अन्न देती है । बिना मेहनत ही अगर तू हमें अन्न दे दिया करें ,तो तेरा क्या घट जाए ?
धरती मुस्कुरायी और बोली – मेरी तो इसमें शान बढ़ेगी लेकिन तेरी शान बिल्कुल ख़त्म हो जाएगी
रवींद्रनाथ टैगोर
आपकी आभारी विमला विल्सन मेहता
जय सच्चिदान🙏🙏