कभी नज़रें मिलने में लम्हे बीत जाते हैं
कभी नजरे चुराने में ज़माने बीत जाते हैं
किसी ने ऑख भी खोली तो सोने की नगरी में किसी को घर बनाने में ज़माने बीत जाते हैं
कभी काली गहरी रात में हमे एक पल की लगती है
कभी एक पल बिताने में ज़माने बीत जाते है
कभी खोला दरवाज़ा खड़ी थी सामने मंज़िल
कभी मंज़िल को पाने में ज़माने बीत जाते हैं
एक पल में टूट जाते हैं उम्र भर के वो रिश्ते
जो बनाने में ज़माने बीत जाते हैं
किसी से इतनी घृणा ना करना कि कभी मिलना पड़े तो नज़रें ना मिला सके और
किसी से इतना प्रेम भी ना करना कि कभी अकेले में जीना पड़े तो जी ना सके ।
मै उन चार लोगो को एक मुद्दत से ढूँढ रहा हूँ जिनको मेरी पर्सनल लाईफ़ मे इतना interest है कि घरवाले हमेशा यही बोलते है
“ चार लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे “
दोनों तरफ़ से निभाया जाये
वही रिश्ता कामयाब होता है जनाब
एक तरफ़ से सेंक कर तो रोटी भी नहीं बनती
हमेशा सच बोलिये
झूठ को तो याद रखना पडता है मगर सच को ज्यादा कुछ याद रखने की जरूरत नही पड़ती है ।
झूठ बोलने वाले इंसान से भरोसा तो उठता ही है साथ मे उसकी कीमत भी खत्म हो जाती है ।
पीठ पीछे कौन क्या
बोलता है कुछ फर्क नही पडता
सामने किसी का मुँह नही खुलता बस यही काफी
आपकी आभारी विमल विल्सन मेहता
जय सच्चिदानंद 🙏🙏
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