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शादी के बाद जब कम उम्र मे ही पति या पत्नी किसी एक का देहांत हो जाता है तो पूरी ज़िंदगी अकेले काटना बहुत मुश्किल हो जाता है । चाहे पूरा परिवार साथ हो लेकिन जीवन साथी की कमी को चाहकर भी कोई पूरा नहीं कर सकता । छोटे छोटे बच्चों की ज़िम्मेदारी के साथ और भी कठिन हो जाता है । विशेषतया विधवा नारी के साथ , क्योंकि समाज उस नारी को खुशी से जीने नहीं देता, अलग दृष्टि से देखता है । देखकर ऐसा लगता है कि पति के साथ उसकी सारी ख़ुशियाँ लुट गई । हालाँकि आज के ज़माने मे काफी परिवर्तन आया है , पुन: विवाह होने लगे है । गॉवो मे कम व शहरों मे ज़्यादा बदलाव आया है ।
आई विदाई की घड़ी ,छोड़ बाबुल का घर
पिया के मंदिर गई ,सलोने सपने के संग
पिया का प्रथम प्यार पाया , पाकर खुशी से हरषाई
चार दिन पति साथ ,मँझधार छोडा प्रिया हाथ
सारी उम्र काटी सूनी , मॉग ना भरवाई पाछी
कैसा है ये समाज का दस्तूर ,
विधुर नर पुन: विवाह रचे,ताकि जिन्दगी फिर से खिले ,
ताउम्र विधवा रह कर ,सारा जुल्म नारी सहे ,
विधवा का विवाह करो, सूनी मॉग को फिर से भरो
लौटा दो उसको ख़ुशियाँ सारी ,इसमें है हम सब की भलाई ।
आपकी आभारी विमला विल्सन
लिखने मे ग़लती हो तो क्षमायाचना 🙏🙏
जय सच्चिदानंद 🙏🙏
achche mudde ko bahut hi sundarta se uthaya hai…….bahut khub.
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Thanks
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