इंसान कभी भी अपनी आदतों का ग़ुलाम नही बने । वह किस कदर दुखी कर सकती है , एक दृष्टांत के ज़रिये समझने की कोशिश करेंगे ….
एक व्यक्ति रिटायर होने के बाद रोज किसी संत पुरूष के पास अच्छी ज्ञानवान बाते सुनने जाता । आते समय उसका चेहरा दुखी दिखता लेकिन वापसी मे वह प्रसन्नचित होकर लौटता । एक दिन वह बहुत दुखी होकर होकर संत पुरूष के पास गया और कहने लगा कि जब से मै नौकरी से रिटायर हुआ हूँ तब से बहुत दुखी रहने लगा हूँ । सुनकर संत ने पूछा तुम कहॉ नौकरी करते थे । उस व्यक्ति ने कहा कि मै थाने मे सबइंस्पेक्टर की पोस्ट पर काम करता था और वहॉ सभी लोग मुझे देखते ही सेल्यूट मारते थे । संत बोले कि ये तो अच्छी बात है फिर क्यूँ दुखी होते हो ? वह व्यक्ति बोला कि यही तो मेरे लिये दुखी होने वाली बात है । मेरी लोगो से रोज़ सेल्यूट मरवाने की आदत पड़ गई । अब कोई सेल्यूट नही मारता तो बैचेनी शुरू हो जाती है । सेल्यूट तो दूर कोई बात भी नही करने आता है । यह सुनकर संत हँसते हुये बोले कि कभी कभी आदतों की ग़ुलामी भी इंसान को कितना दुखी कर देती है ।
अत: हमे कभी भी अपनी आदतों का ग़ुलाम नही बनना चाहिये
आपकी आभारी विमला विल्सन मेहता
लिखने मे गलती हो तो क्षमायाचना 🙏😊
जय सच्चिदानंद 🙏🙏
Wow it’s too good!
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बहुत खूब कहा आपने।👌👌👌
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Thanku so much
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Super vichar
Aapka blog bahut hi achha hai
Aapke thoughts
Padh kar bahut achha laga
http://www.achhikhabare.com
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धन्यवाद ।
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आपने लेख की प्रशंसा की लेकिन अभी इतनी प्रशंसा के योग्य नही हूँ । इस तारीफ़ के लिये बहुत बहुत शुक्रिया ।
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Jo bhi aap likhti hain bahut gajb ki likhti hain
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धन्यवाद । आपको लेख अच्छे लगे
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