1.क़ुदरत को नापसंद है सख़्ती ज़बान मे ।
पैदा हुई न इसलिये हड्डी ज़बान मे !
2. बिना नम्रता के कही सुना ज्ञान पड़ा
बिना झुकाये कूप मे भर सकता ना घड़ा !
3. बनी रहे कुटुम्ब मे प्रतिष्ठा , झलके चाल चलन से ।
ये सब मिल जाने पर निश्चिंत होकर , फिर रमाये मन प्रभु भक्ति मे ।
आपकी आभारी विमला मेहता
जय सच्चिदानंद 🙏🙏
बहुत खूब विमला जी।
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद रजनी जी
LikeLike
लाजबाव।
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद पवन जी
LikeLiked by 1 person
😊😊
LikeLiked by 1 person
अद्भूत कलाकृति जय सच्चिदानंद
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद नागेश्वर जी ..जय सच्चिदानंद
LikeLiked by 1 person
क़ुदरत को नापसंद है सख़्ती ज़बान मे ।
पैदा हुई न इसलिये हड्डी ज़बान मे …..waah …..kyaa dhundh kar shabdon ka istemaal kiya hai….lajwaab.
LikeLiked by 1 person
आपको अच्छा लगा …बहुत बहुत धन्यवाद मधुसूदन जी
LikeLike
Swagat apka….badhiya likha achchaa lagna swabhawik hai…
LikeLiked by 1 person