अवचेतन मन -इच्छाओं का वृक्ष….भाग एक ….
हमारे भीतर दो मन होते है : – चेतन मन और अवचेतन मन। चेतन मन यानि वह मस्तिष्क, जो सोचता है और जिसके बारे में हम जागरूप होते है। दूसरी ओर, हमारे भीतर एक अवचेतन मन भी होता है, जो हमें दिखाई तो नहीं देता है, लेकिन यह हमें जल्दी से और सही तरीक़े से काम पूरा करने के नए-नए तरीक़े सुझा सकता है। जब रात को हम और हमारा चेतन मन दोनों ही सो रहे होते हैं तो अवचेतन मन किसी भी समस्या पर काम करना शुरू कर देता है और सुबह होते ही जवाब हमारे सामने पेश कर देता हैं ।जो काम चेतन मन के लिये मुश्किल होता हैं उन्हें अवचेतन मन चुटकियों में कर देता है, इसलिए अवचेतन मन की शक्ति को समझे ।
यदि हम अगले दिन की योजना एक एक दिन पहले बनाये तो योजना बनाने से अवचेतन मन की शक्ति का लाभ मिल जाता है। अवचेतन मन को एक लघु कथा से भी समझ सकते हैं ….
एक घने जंगल में एक इच्छापूर्ति वृक्ष था, उसके नीचे बैठ कर किसी भी चीज की इच्छा करने से वह तुरंत पूरी हो जाती थी यह बात बहुत कम लोग जानते थे..क्योंकि उस घने जंगल में जाने की कोई हिम्मत ही नहीं करता था ।
एक बार संयोग से एक थका हुआ इंसान उस वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया ।उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी नींद लग गई।जब वह जागा तो उसे बहुत भूख लग रही थी ,उसने आस पास देखकर सोचा काश कुछ खाने को मिल जाए ,तत्काल स्वादिष्ट पकवानों से भरी थाली हवा में तैरती हुई उसके सामने आ गई ।उस इंसान ने भरपेट खाना खाया और भूख शांत होने के बाद सोचने लगा कि काश कुछ पीने को मिल जाए ऐसा सोचते ही तत्काल उसके सामने हवा में तैरते हुए कई तरह के पेय आ गए,पेय पीने के बाद वह सोचने लगा कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ ।क्योंकि हवा में से खाना,पेय आते हुये पहले न कभी देखा ना ही सुना ।उसने सोचा जरूर इस पेड़ पर कोई भूत प्रेत रहता है जो मुझे पहले खिला पिला कर बाद मे मार कर खा लेगा । इतना सोचते ही तत्काल उसके सामने एक भूत आया और उसे खा गया ।
इस कथा का कहने का अभिप्राय यह है कि हमारा मस्तिष्क ही इच्छापूर्ति वृक्ष है हम जिस चीज की प्रबल इच्छा करेंगे वह हमे अवश्य मिलेगी ।
इंसान ज्यादातर समय सोचता है ।अधिकांश लोगों को जीवन में बुरी चीजें इसलिए मिलती हैं.क्योंकि जाने अंजाने वे बुरी चीजों के बारे मे सोच लेते हैं ।उदाहरण के तौर पर…कहीं बारिश में भीगने से मै बीमार न हों जाँऊ और वह बीमार हो जाता हैं ।कहीं मुझे व्यापार में घाटा न हों जाए..और घाटा हो जाता हैं । मेरी तो किस्मत ही खराब है .. उसकी किस्मत सचमुच खराब हो जाती हैं ।कहीं मेरा बाँस मुझे नौकरी से न निकाल दे…और बाँस उसे नौकरी से निकाल देता है।
कई बार तो काम इसलिए अधूरा छूट जाता है, क्योंकि हम काम के नहीं, समय के संदर्भ में सोचते हैं। सिर्फ समय के आधार से नही बल्कि काम पूरा निबटाने के बारे में सोचिए। इसका एक उदाहरण देखिए -एक विद्यार्थी सोचता है, मैं एक घंटे तक गणित पढूंगा। दूसरा विद्यार्थी सोचता है, मै सवाल करूँगा। अब सोचिए, किसकी प्रगति ज्यादा होगी ? दूसरे विद्यार्थी की। इसलिए, क्योंकि उसने काम का स्पष्ट लक्ष्य बनाया था। तो हमे भी इस विद्यार्थी की तरह काम का स्पष्ट लक्ष्य बनाना चाहिये ताकि सफ़लता हासिल कर सके
इस तरह देखते है कि हमारा अवचेतन मन इच्छापूर्ति वृक्ष की तरह हमारी इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करता है ।
इसलिए हमे अपने मस्तिष्क में विचारों को सावधानी से प्रवेश करने की अनुमति देनी चाहिये। अगर गलत विचार अंदर आ जाएगे तो गलत परिणाम मिलेंगे ।विचारों को स्वस्थ रखना ही अपने जीवन को सफल बनाने का रहस्य है ।विचारों से ही हमारा जीवन या तो स्वर्ग बनता है या नरक ।
अपनी छोटी सी जिंदगी को ऐसे ही न गवाईये ।इसलिये हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए । यदि हम अच्छा सोचने लगते है तो प्रकृति उसे पूरा करने में मदद करती हैं ।
आपकी आभारी विमला मेहता
जय सच्चिदानंद 🙏🙏
picture taken from google
लिखने मे गलती हो तो क्षमायाचना 🙏🙏
क्रोध,लोभ और स्वार्थ में फंसे हम सोंचकर बहुत ही मुश्किल से कोई काम कर पाते हैं भले ही नतीजा भयावह क्यों ना हो।आपने बहुत बढ़िया कहा कि—
सोच कर अच्छे विचार जीवन मे लाएं,
छोटी सी जिंदगानी ब्यर्थ ना गवाएं।
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धन्यवाद आपको अच्छा लगा
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