सर नही ऊँचा कभी ,रहते सुना अभिमान का
अपने ऊपर ही पड़ता है ,थूका हुआ आसमान का
“यौवन” , “वाणी” ,अरू “समय” “बहता हुआ जल ” एक बार जो जाय
खूब कहे इन चारो को ,मुड़कर वापिस ना आय
जीवन एक वृक्ष है फ़ानी ,बचपन तने ,शाख जवानी
फिर है पतझड़ खुश्क बुढ़ापा ,उसके बाद है खत्म कहानी
आपकी आभारी विमला मेहता
जय सच्चिदानंद 🙏🙏
“यौवन” , “वाणी” ,अरू “समय” “बहता हुआ जल ” एक बार जो जाय
खूब कहे इन चारो को ,मुड़कर वापिस ना आय….bahut khub kaha ….bahut khub likha……umda.
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बहुत बहुत धन्यवाद
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अपने ऊपर ही पड़ता है ,थूका हुआ आसमान का
बहुत ही खूब लिखा है!!
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बहुत बहुत धन्यवाद
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