जीवन का लक्ष्य ….
इस लेख मे यह कहने की कोशिश की गई है कि हर इंसान को अपनी अपनी रूचि के अनुसार लक्ष्य को पाने की कोशिश के साथ एक और बहुत महत्वपूर्ण व अंतिम लक्ष्य को भी पाने का ध्येय रखना चाहिये जिसकी चर्चा आगे की गई है ।
आज किसी भी इंसान को पूछा जाये कि उसे जिन्दगी मे क्या करना है तो जवाब मे किसी को डॉक्टर बनना है ,तो किसी को इंजीनियर ,किसी को वकील बनना है ।किसी को फिल्म क्षेत्र मे काम करना पसंद है तो किसी को समाज सेवा….यानि अलग अलग लोगो की अलग अलग चाहत ।लेकिन हमने कभी ये सोचा है कि ये वाकई मे हमारा अंतिम लक्ष्य है ।
जीवन की यात्रा हम कर रहे है और अपने अंतिम लक्ष्य का पूरी तरह से पता नही ? ये कैसी विडम्बना है ।
बोलने को तो यही बोलेंगे कि हमने अपना लक्ष्य अपनी मंजिल चुन ली है । किसी को वक़ील बनना है तो उसने वकालत की लाइन चुन ली । किसी को करोड़ो रूपये कमाने है तो बिजनेस कर लिया ।किसी को नाम व शोहरत व धन तीनो कमाना है तो फिल्म या खिलाड़ी …और भी कोई केरियर चुन लिया ।
ये सभी लक्ष्य एक हद तक तो मंजिल की तरफ पहुचॉ सकते है किन्तु ये हमे जिंदगी के सही लक्ष्य तक नही पहुँचा पाते है क्योकि जब हम अपने सोचे गये लक्ष्य तक पहुँचेंगे तब लगेगा कि जो हमने चाहा वहॉ तक को अभी हम पहुँचे नही है । उस दिन हमे ये भी लगेगा कि हमने लक्ष्य का चुनाव करने मे गलती की है । उदाहरण के लिये किसी व्यक्ति की मासिक आय बीस हज़ार है । बाद मे उसने और उच्च स्तर की पढ़ाई शुरू करके परीक्षा दी ।जब उससे पूछा कि उसने यह परीक्षा क्यूँ दी तो वह बोलेंगा कि इस परीक्षा मे पास होने पर उसे महीने के डेढ़ लाख रूपये वेतन के तौर पर मिलेंगे। इसके बाद और परीक्षा दूँगा तो दो लाख रूपया महीना मिलेगा । इस व्यक्ति का लक्ष्य दो लाख रूपया मासिक आय प्राप्त करना है लेकिन ये सब मिलने के बाद भी क्या वह संतुष्ट होकर आराम से बैठ जायेगा या उसे शांति महसूस होगी । क्या उसके जीवन मे कोई और इच्छाये शेष नही रहेंगी । क्या दो लाख प्राप्त करने वाले एकदम सुखी है । देखा जाये तो दो लाख क्या दस लाख कमाने वाले भी यदि ब्लेक मार्केटिंग मे पकड़े जाते है तो उनका जीवन अशांत हो जाता है । इसका मतलब हम जीवन के सही लक्ष्य से भटक गये है या हमे मालूम ही नही कि सही लक्ष्य क्या है ।
जिस मनुष्य का जिंदगी मे सही लक्ष्य निर्धारित नही होता है तो वह व्यक्ति जब विलास की चरम सीमा पर पहुँचता है तो पतनता को निमंत्रण देता है ।अति विलास मनुष्य की मानवता को पशुता मे बदल देता है । भलई भौतिक सौन्दर्य की चकाचौंध को उसने अपना जीवन का लक्ष्य व सुख समझ लिया हो पर उसे कभी भी इन चीजो मे तृप्ति का अनुभव नही होगा ,वह आध्यात्मिकता के आनंद व सुख से वंचित हो जायेगा ऐसा आनंद जो कि मन को ऐसे तृप्त करता है जहॉ सारे भौतिक सुख गौण हो जाते है उसकी चाहत ही नही रहती । इस प्रकार के मामले मे भौतिकता व आध्यात्मिकता दोनो के बीच की खाई चौड़ी हो जाती है ।
आज मनुष्य की स्थिती वैसी हो गई है जैसे कि बिना एड्रेस के लेटर की । एक व्यक्ति अपने मित्र को लेटर लिखता है । कागज व लिखावट सुंदर है , उसके हर शब्द मे ऐसा प्यार बरस रहा है कि पढने वाले का भी दिल बाग बाग हो जाये । लेटर लिफाफे मे डालकर उस पर व्यक्ति का नाम व पता तो लिख दिया लेकिन शहर का नाम लिखना भूल गया फिर वह लेटर बॉक्स मे डाल दिया गया ,लेकिन यह लेटर उसके मित्र के पास नही पहुँचेगा क्योकि उसने लेटर पर एड्रेस यानि अपना लक्ष्य नही लिखा ।
इसी प्रकार एक पेंटर ,पेंट ब्रश को हाथ मे लेने से पहले यदि दिमाग मे चित्र की कल्पना करता है बाद मे वह पेंटिंग बोर्ड पर उतारता है तो वह चित्र सुंदर बना पाता है इसी प्रकार यदि हमे जीवन कुछ पाना है तो पहले उसका लक्ष्य निर्धारित कर लेना चाहिये।
तो प्रश्न यह उठता है कि मनुष्य जीवन का वास्तविकता मे अंतिम ध्येय या लक्ष्य क्या है तो इसका एक ही छोटा लेकिन बहुत सुंदर जवाब होगा कि ,
मानव मानवता मे आ जाये ।
इंसान अपने निज यानि वास्तविक स्वरूप मे आ जाये ।
विभाव दशाओं को छोड़कर स्वाभाविक दशाओं मे आ जाये ।
स्वाभाविक दशा यानि शुद्धात्मा की दशा
आभारी – विमला
लिखने मे गलती हो तो क्षमायाचना 🙏🙏
जय सच्चिदानंद 🙏🙏
Behad uttam👌👌👌
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आभार आपका
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बहुत सुन्दर लेख है आपका |
लेख के आखिर में आपने काफी भारी शब्दावली का प्रयोग किया है | मसलन “स्वाभाविक दशा यानि शुद्धात्मा की दशा” | सामान्य मनुष्यों को इसको समझने में समय लगेगा | | कृपया इसपर थोड़ा और प्रकाश डालें | बहरहाल मई आपके अन्य blogs पढूंगा |
आपकी शानदार लेखनी के लिए आपको बधाइयाँ
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आपको अच्छा लगा इसके लिये धन्यवाद । शुद्धात्मा दशा यानि ..absolute pure soul
आगे मै इसके बारे मे पूरा विवरण लिखूँगी तब समझ आ जायेगा ।
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