जैसा हम दूसरो के साथ व्यवहार करेंगे वैसा ही व्यवहार हमे वापस मिलेगा । इसी संदर्भ मे ये कहानी पढिये …….
एक गॉव मे बहुत गरीब औरत रहती थी । पति का देहांत हो चुका था । छोटे छोटे बच्चे थे । उसके पास कुछ बीघा जमीन थी ,उसी मे सब्ज़ियों व फलो को उगाती और उसका बेटा उसे बेचने के लिये शहर मे जाया करता था । इस तरह वह अपना व बच्चो का पेट पालती ।
एक दिन उसका बड़ा बेटा बीमार हो गया और वह सब्जी फल बेचने ना जा सका तो वह औरत सब्जी व फल के आधे आधे किलो के पैकेट बनाकर शहर की तरफ बेचने चल पड़ी और रोज वाली दुकान पहुचँ गई । हर पैकेट का वज़न आधा किलो का था
दुकानदार ने सामान ले लिया और हमेशा की तरह बदले मे आटा ,तेल ,शक्कर ,चायपती ,चावल आदि उसे दे दिया ।गरीब विधवा के जाने के बाद उसने सब्जी व फल को बेचने वाली जगह पर रखना शुरू किया । रखते रखते उसे विचार आया कि क्यों ना इन सबका वज़न करके देखू । उसने एक पैकेट का वज़न किया तो चार सौ ग्राम निकला ।सोचा शायद ग़लती से कम हो गया होगा । दूसरा तोला वह भी उतना ही निकला ।अब एक के बाद एक वज़न करने पर हर पैकेट का वज़न चार सौ ग्राम ही निकला ।उसे आश्चर्य और हैरानी भी होने लगी तथा साथ ही साथ उसे उस औरत पर भयंकर गुस्सा आने लगा ।
अगले दिन फिर वह विधवा सब्जी और फल लेकर दुकान पहुँची और दुकानदार को दूसरे सामान की लिस्ट थमा दी दुकान वाला एकदम से भड़कता हुआ गुस्से मे उस गरीब से बोला कि चली जाओ मेरी दुकान से ,मुझे तुम्हारे से कोई लेनदेन नही करना है । गरीब विधवा बोली कि “साहब” बताओ तो सही मेरे से कहॉ भूल हो गई । वह चिल्लाता हुआ बोला कि चोरी ऊपर से सीनाज़ोरी । हमेशा पॉच सो ग्राम की जगह चार सौ ग्राम का पैकेट पकड़ा देती हो ,ऐसा करते हुये तुम्हे जरा भी शर्म नही आयी । उस विधवा ने हाथ जोड़कर बहुत ही शांत आवाज़ मे जवाब दिया कि मालिक हम तो बहुत गरीब है हमारी कहॉ हैसियत की माप तौल की मशीन ख़रीदे ।आप जो भी आधा किलो का सामान देते उसे तराज़ू के एक पलड़े पर रख देते तथा दूसरे पलड़े मे आधे आधे किलो के सब्जी और फल के पैकेट रख देते । दुकानदार का चेहरा उतर गया । उसके पास कहने को कुछ भी नही बचा था । खुद पर शर्म आ रही थी । उसने अपनी गलती स्वीकारते हुये उस गरीब विधवा से माफी मॉगी और बोला “बहना”माफ कर दो तुम्हारी कोई भी गलती नही है । सच है कि जो हम देंगे वही हमारे पास वापस लौट कर आयेगा । चाहे वह इज्जत हो या मान सम्मान या अपमान । चाहे धोखा हो या निंदा ….
संक्षेप मे यही बोल सकते है कि जैसा हम दूसरो के साथ व्यवहार करेंगे वैसा ही व्यवहार हमे वापस मिलेगा ।
जैसा हम कर्म करेंगे वैसा ही हमे फल मिलेगा । जैसा बीज बोयेंगे वैसा फल पायेंगे जैसे कि नीम का बीज बोयेंगे तो नीम का ही पेड उगेगा आम का नही ।
इसलिये हमे कभी भी दूसरे के साथ छल,कपट या बेइज़्ज़ती ,निंदा अपमान या द्वेष …..आदि नही करना चाहिये ।
लिखने मे गलती हो तो क्षमायाचना 🙏🙏
जय सच्चिदानंद 🙏🙏
बहुत ही सच और सटीक कहा है आपने।
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धन्यवाद जी
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आपने लिखा तो बहुत अच्छा है काश इसे लोग अपना ले तो दुश्मनी और मतभेद का कोई जगह ही नही रहेगा।
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धन्यवाद आपको अच्छा लगा ।
हमे अपनी तरफ से पूरी कोशिश करनी चाहिये । दूसरो पर जोर नही
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मै दुसरो पर जोड़ देने की बात नही कह रहा हूँ…..आखिर कोई भी रिश्ता अच्छा कब बनता है जब दोनों एक दूसरे को इज़्ज़त करे , एक दूसरे के भावना को समझे।।नही तो एक तरफा कोई भी चीज़ ज्यादा दिन नही टिकता।
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सही बोला आपने । एक तरफ से कुछ नही होता । वो रिश्ता टिकता भी नही है
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आपके विचार सुनकर अच्छा लगा
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खैर मेरे सोचने या न सोचने से क्या होता है….मै चाह कर किसी को बदल नही सकता बस आपको खुद वक़्त और हालात के अनुसार खुद को बदलना होता है।
सभी आदमी चाहता है कि लोग उसके भवनाओं को समझे पर क्या वो खुद दुसरो की भावना को समझता है….नही , । तब हम कैसे उम्मीद करे कि सब लोग सुधर जाए…पहले अपने अंदर देखना होगा।
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आपकी बात सही है कि हमे अपने अंदर देखना चाहिये । हमे अपना पुरुषार्थ करते रहना चाहिये ,इसमें अपना स्वार्थ होता है क्योकि हमे अपना भव सुधारना है ।
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धन्यवाद…..आपको मेरे विचार अच्छे लगे।मै ऐसा ही सोचता हूँ कि कोई भी रिश्ता निभाया जाता है ढोया नही जाता। अभी सभी लोग रिश्ते ढो रहे है, निभा नही रहे है। निभाने के लिए एक दूसरे का कद्र करना जरूरी होता है।
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Right
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बहुत सटीक कहानी लिखी है आपने। सच कहा जाए तो ये कहानी नही बल्कि जीवन की सच्चाई है। जो भी हम कर्म करते हैं हमे उसी का फल मिलता है।
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आपको अच्छी लगी । बहुत बहुत धन्यवाद
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jai sacchidanand
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Jsca
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