मनुष्य जिंदगी बड़ी दुर्लभ हैं और हमें अपना पूरा जीवन किये गये मन के भावो के अनुरूप बिताना पड़ता है ।भाव के आधार से हमारे कर्मो का बंधन होता हैं वही कर्म का भुगतान हमें जिंदगी भर करना पड़ता हैं ।
प्रत्येक इंसान को हमेशा दिल से हर समय एक ही भाव करना चाहिये कि हमारे मन वचन काया से किसी भी जीव को किंचितमात्र भी दुख न पहुँचे तो हमारा मनुष्य जीवन सार्थक हो जायेगा ।
मनुष्य जीवन मे भावो का बड़ा महत्व हैं ।हम जैसा भाव करते हैं उसके अनुरूप हमें जिंदगी मिलती हैं । मनुष्य का अगला भव भी भाव से तय हो जाता हैं ।
उदाहरण के लिये हम किसी व्यक्ति को खुश करने के लिये सबके सामने अच्छा बोलकर उसकी प्रशंसा करते हो लेकिन मन ही मन मे उसके प्रति बुरे विचार आ रहे हो , उसके दोष ही दोष देख रहे हो तो इसका मतलब हम उसके प्रति खराब भाव कर रहे हे ।
इसी संदर्भ मे एक लघु कहानी —” भाव का प्रभाव “….
किसी गाँव मेँ एक ज्ञानी पंडित ज्ञानचंद रहता था ,जो दिन भर लोगो को धर्म के बारे मे बडे बडे उपदेश दिया करता था। ज्ञान की बड़ी बड़ी बाते करता । दूर दूर से लोग उसकी बातों से प्रभावित होकर सुनने आते थें ।
उसी गाँव में एक मुजरे वाली रहती थी । जिसका नाम रत्ना बाई था । वह बहुत गरीब थी और पूरे परिवार के पालन पोषण की जिम्मेदारी उस पर थी इसलिये वह लोगो के सामने मुजरा करके उनका मन बहलाया करती थी।
समय की गति कभी नही रूकती । एक दिन उस गॉव में तेज तूफान आया और देखते देखते पूरा गाँव चपेट मे आ गया ।दोनो एक साथ उस चपेट में आकर मर गये।
मरने के बाद जब ये दोनो यमलोक पहूँचे तो इनके कर्मो और भावो के आधार पर इन्हें स्वर्ग या नरक दिये जाने की बात कही गई।
ज्ञानीचंद खुद को स्वर्ग मिलने को लेकर पूरा निश्चिंत था। वहीँ रत्ना बाई अपने मन मे ऐसा कुछ भी नही सोच रही थी। वह सिर्फ फैसले का इंतजार मे थी । तभी यमराज ने आदेश कि ज्ञानचंद को नरक और रत्ना बाई को स्वर्ग दिया जाता है।
इस फैसले को सुनकर ज्ञानचंद एकदम गुस्से से यमराज पर चिल्लाया और बोला ,यह कैसा न्याय है महाराज ? मैं जीवन भर लोगोँ को ज्ञान और उपदेश देता रहा फिर भी मुझे नरक मिल रहा है जबकि रत्ना बाई जीवन भर लोगो को रिझाने के लिये मुजरा करती रही और इसे स्वर्ग दिया जा रहा है। ऐसा क्यो ?
यमराज ने शांत भाव से उत्तर दिया, रत्नाबाई अपना व पूरे परिवार का पेट भरने के लिये मजबूरी में नाचती थी लेकिन इसके मन मे हमेशा यही भावना रहती थी कि मै अपनी कला को ईश्वर के चरणो में समर्पित कर रही हूँ।
जबकि तुम ज्ञान देते हुये भी मन में यह सोँचते थे कि काश तुम्हे भी रत्ना बाई का नाच देखने को मिल जाता तो मजे करता लेकिन लोगो के सामने अपने आप को ज्ञानी व धार्मिक प्रदर्शित करने के चक्कर में मन मसोस कर रह जाते । तुम ज्ञान की बात करते हुये भी इस बात को भूल गए कि इंसान के कर्म करने से अधिक उसके पीछे छुपी भावनाये मायने रखती है इसलिये तुम्हे नरक और रत्नाबाई को स्वर्ग दिया जाता है।
दोस्तो !! हम कोई भी काम करें,उसे करने के पींछे भाव अच्छा होना चाहिए , अन्यथा बाहरी दिखावे में अच्छे लगने वाले कार्य भी हमे पुण्य की जगह पाप का भागी बना देंगे। भाव सकारात्मक या नकारात्मक कैसे भी हो सकते है पर हमें सबके लिये सकारात्मक ही सोचना चाहिये ।
सभी इंसानों एक दूसरे से मान सम्मान और आदर पाने के अलावा न जाने कितनी अनगिनत अपेक्षाओ या इच्छाओं की वजह से एक दूसरे के लिये मन ही मन इतने भाव खराब कर लेता है कि वह इस भव के साथ वह अगला भव भी बिगाड़ लेता हैं
प्रकृति का नियम है जो बीज बोयेंगे वही फल आयेगा । ठीक उसी प्रकार हम जैसा भाव करेंगे वैसा ही हमे जीवन मिलेगा । सुख दुख देने वाला कोई नही होता हमारे कर्म ही हमें इसका अनुभव कराते हैं ।
गुरूत्वाकर्षण नियम की तरह हमारे जिंदगी का भी नियम हैं जो दोगे वही लौटकर हमारे पास वापस आयेगा । हम किसी को सुख या दुख जो भी देंगे तो हमें भी वही मिलेगा
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लिखने मे गलती हो तो क्षमायाचना 🙏🙏
जय सच्चिदानंद 🙏🙏