दोस्तो हम कुछ वाक्या लेते है जिंदगी की हक़ीक़त को समझने के लिये ……
.पहला वाक्या……
एक गिलहरी रोज अपने काम पर समय से आती थी और अपना काम पूरी मेहनत और ईमानदारी से करती थी ।गिलहरी जरुरत से ज्यादा काम कर के भी खूब खुश थीl क्योंकि उसके मालिक, जंगल के राजा शेर ने उसे दस बोरी अखरोट देने का वादा कर रखा था। गिलहरी काम करते करते थक जाती थी तो सोचती थी , कि थोडी आराम कर लूँ लेकिन जैसे ही उसे याद आता कि शेर उसे दस बोरी अखरोट देगाl गिलहरी फिर काम पर लग जाती ।
गिलहरी जब दूसरे गिलहरीयों को खेलते देखती थी, तो उसकी भी इच्छा होती थी कि मैं भी खेलूं , पर उसे अखरोट याद आ जाता,और वो फिर काम पर लग जाती ।
ऐसे ही समय बीतता रहा….एक दिन ऐसा भी आया जब काम समाप्त हो गया और जंगल के राजा शेर ने खुश होकर गिलहरी को दस बोरी अखरोट दे दिये ।
अब गिलहरी ने सोचा चलो अखरोट खाने का आनंद ले लिया जाये और आराम से बैठकर अखरोट को खाने लगी तो अरे !!ये क्या हुऑ ? दॉत खाने मे साथ ही नही दे रहे थे क्योंकि दॉत तो घिस चुके थे ।गिलहरी सोचने लगी कि अब अखरोट मेरे किस काम के ?पूरी जिन्दगी काम करते करते दाँत तो घिस गये ।
दोस्तो यही कहानी आज जीवन की हकीकत बन चुकी है । इन्सान अपनी इच्छाओं का त्याग कर कर के पूरी ज़िन्दगी नौकरी, व्यापार और धन कमाने में बिता देता है ।स्वयं के लिये समय नही दे पाता है ।ख़ुद को कैसे प्रसन्नता मिलेगी ये भी कभी नही सोचता है । बस मन मे यही सोचता है कि मैं ढेर सारे पैसे कमा लूँ बाद मैं आराम से जिंदगी के दूसरे कार्य करूँगा जैसे वह अमरत्वता का वरदान लेकर आया हो । आत्मा और धर्म के लिये भी समय नही निकालता हैं । बुढापे में धर्म करेंगे ऐसा सोचता है।
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है क्योंकि 60 वर्ष की उम्र में जब वह सेवा निवृत्त होता है, तो उसे उसका फन्ड या बैंक बैलेंस जो भी होता है, तो उसे भोगने की क्षमता खो चुका होता है ।शरीर साथ नही देता , कमज़ोर हो जाता हैं ,रोग ग्रस्त होने लगता हैं ।आंखों से कम दिखाई हैं । अब धर्म कैसे करेंगे आत्मा का सुख कैसे पायेंगे ….ऐसे ढेर सारी बाते होती है जो “मनुष्य जन्म को सार्थक “करती है से वंचित रह जाते हैं ।
जिंदगी भर सदगुरू की संगति की नही बुढापे में कैसे भाव आएंगे? सोते सोते या बोझा ढोते ढोते ही निकल जाती हैं सारी जिंदगी।
बुढ़ापा आने तक पीढी बदल चुकी होती है, परिवार को चलाने वाले बच्चे आ जाते है। क्यॉ इन बच्चों को जरा भी इस बात का अन्दाजा होगा कि इस फन्ड, इस बैंक बैलेंस के लिये हमने कितनी इच्छायें मारी होंगी ?कितनी तकलीफें झेली होंगी ?कितनें सपनें अधूरे रहे होंगे ?जवाब ना मे मिलेगा
क्या फायदा ऐसे फन्ड का, बैंक बैलेंस का, जिसे पाने के लिये पूरी ज़िन्दगी खत्म हो जाये और मानव उसका उपभोग ना कर सके । क्या फायदा मनुष्य भव मिलकर , कभी हाथों से दान किया नही, पैरों से तीर्थ यात्रा की नही।आंखों से धार्मिक पुस्तकों का स्वाध्याय किया नही। जुबान से भगवंत की वाणी बोली नही। कानो से सदगुरू का प्रवचन सुना नही। सत्संग किया नही ।फेस बुक , व्हाट्सअप का उपयोग करके भी क्या फायदा कभी धर्म का फैलाव किया नही ।
चाहे कितना भी धन कमा ले पर इस धरती पर कोई ऐसा अमीर अभी तक पैदा नहीं हुआ जो बीते हुए समय को खरीद सके। इसलिए हर पल को खुश होकर भगवान का अनमोल तोहफ़ा समझकर उसका लाभ उठा कर जियो ।आत्मा में व्यस्त रहो और मस्त रहो सदा स्वस्थ रहो।
जिस दिन मौत आयेगी न सोना काम आयेगा ना चांदी आयेगी ना धन माया ।
इसी तरह दूसरा वाक्यॉ लेते हैं ……
किसी रिश्तेदार के यहॉ पूजा मे आमंत्रण था । वहॉ गई तो देखा कि पूजा के साथ हवन भी हो रहा था। पंडित जी ने सबको हवन में शामिल होने के लिए बुलाया। सबके सामने हवन सामग्री रख दी गई। पंडित जी मंत्र पढ़ते और कहते, “स्वाहा”।लोग चुटकियों से हवन सामग्री लेकर अग्नि में डाल देते ।जिसके यहॉ हवन था उसको हवन मे स्वाहा बोलते ही घी डालने की ज़िम्मेदीरी सौंपी गई। हर व्यक्ति थोड़ी सामग्री डालता । इस डर में कि कहीं हवन खत्म होने से पहले ही सामग्री खत्म न हो जाए ।गृह मालिक भी बूंद-बूंद घी डाल रहे थे। उनके मन में भी डर था कि घी खत्म न हो जाए।
मंत्रोच्चारण चलता रहा,हवन सामग्री डालने के साथ स्वाहा बोलते बोलते पूजा पूरी हो गई ।
सबके पास बहुत सी हवन सामग्री बची रह गई। घी तो आधा से भी कम इस्तेमाल हुआ था। हवन पूरा होने के बाद पंडित जी ने कहा कि आप लोगों के पास जितनी सामग्री बची है, उसे अग्नि में डाल दें। घी डालने वाले से भी उन्होंने कहा कि आप इस बचे घी को भी हवन कुंड में डाल दें। एक साथ बहुत सी हवन सामग्री व घी अग्नि में डाल दी गई। पूरा घर धुंए से भर गया। वहां बैठना मुश्किल हो गया, एक-एक कर सभी कमरे से बाहर निकल गए।
कमरे में जाना संभव नहीं था ।काफी देर तक इंतज़ार करना पडा, सब कुछ स्वाहा होने के इंतज़ार में। उस पूजा में मौजूद हर व्यक्ति जानता था कि जितनी हवन सामग्री उसके पास है, उसे हवन कुंड में ही डालना है। पर सबने उसे बचाए रखा कि आख़िर में सामग्री काम आएगी।
जी हॉ ,इस दृश्य को देखकर मन मे विचार आया कि हम सभी भी तो आज की जिंदगी हवन सामग्री की तरह जी रहे । हम अंत के लिए बहुत कुछ बचाए रखते हैं। ज़िंदगी खत्म होने जाती है और हम हवन सामग्री की तरह हर चीज़ के बचाये रखना चाहते हैं । हम बचाने में इतने खो जाते हैं कि हमे ये अहसास ही न होने पाता है कि एक दिन सब कुछ हवन सामग्री की तरह हमे भी सब कुछ हवन कुंड के हवाले करना है उसे बचा कर क्या होगा बाद में तो वो सिर्फ धुंआ ही देगा।
इसी तरह संसार हवन कुंड है और जीवन पूजा। एक दिन सब कुछ हवन कुंड में मिल जाना है। अच्छी पूजा वही है, जिसमें हवन सामग्री का सही अनुपात में इस्तेमाल हो। इसी तरह अच्छा जीवन भी वही है जिसमें हर चीज़ का समयानुसार सही इस्तेमाल किया जाये ।
जय सच्चिदानंद 🙏🙏
लिखने मे गलती हो तो क्षमायाचना 🙏🙏
Nice
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धन्यवाद जी 🙏🙏
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धन्यवाद जी🙏🙏
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आपने पसंद किया ..धन्यवाद🙏🙏
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